दमोह. जिले में लगातार फर्जीवाड़ा और वित्तीय अनियमितताओं के मामले सामने आ रहे हैं. इस बार नगर पालिका में करोड़ों रुपए के फर्जी बिलों के भुगतान के मामले से दमोह के प्रशासनिक महकमें में हलचल मची हुई है.
बुंदेलखंड में एक कहावत प्रसिद्ध है कि आटा में नमक चलता है नमक में आटा नहीं. मतलब कोई भी काम को उस हद तक ही करना चाहिए कि उस पर उंगलियां न उठाई जा सके. ताजा मामला दमोह नगर पालिका का है. यहां पर लाखों रुपए के बिलों का भुगतान मन माफिक तरीके से कर दिया गया है. जनता की गाढ़ी कमाई को कुछ चंद लोगों और फर्मों को इस तरह से बंदरबाट किया गया है कि यह राशि लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों में है. दरअसल नगर पालिका ने जिस तरह से इस राशि का फर्जी बिलों के सहारे भुगतान किया है अब उससे इतना तो तय हो गया है कि यहां पर कुछ भी असंभव नहीं है. दरअसल नगर पालिका की एक सूची वायरल हुई है जिसमें एक ही कार्य की लिए कई बार भुगतान किया गया है. वह भी इतना अधिक कि उस राशि से एक काम को चार बार तक किया जा सकता है. अब मामला खुलने के बाद नगर पालिका के अधिकारी और अध्यक्ष सहित तमाम पदाधिकारी भी कुछ भी कहने से बच रहे हैं. हालांकि कलेक्टर ने मामले में जांच के आदेश दिए हैं. जब ईटीवी भारत ने पूरे मामले की पड़ताल की तो काफी चौंकाने वाले तथ्य निकलकर सामने आए.
किसको कितना भुगतान किया
पहले तो आपको हम बता दें कि किसको कितना भुगतान किया गया है. सबसे ज्यादा भुगतान भक्ति इंटरप्राइजेज के नाम पर किया गया है. जिसकी राशि एक करोड़ 50 लाख 50 हजार 745 है. दूसरे नंबर पर भोपाल की दीपक इंडस्ट्रीज को किया गया है. उन्हें 68 लाख 67 हज़ार 675 रुपए का भुगतान किया गया है. इसमें 5 लाख 7 हजार 500 रुपए तो ऐसा भुगतान है जिसमें बिना टेंडर बुलाए इस राशि का भुगतान कर दिया गया है. जबकि नियम यह है कि एक लाख रुपए से अधिक के भुगतान या कार्य के लिए टेंडर आमंत्रित किए जाते हैं. इसी तरह करीब 55 लाख रुपए का भुगतान देवांश सेल्स एंड सप्लायर को किया गया है. हालांकि अभी तक केवल 35 लाख 62 हजार 900 रुपए का प्राथमिक भुगतान ही सामने आया है. इसके अलावा एमडी इंजीनियरिंग वर्क्स को 17 लाख 37 हज़ार 540 रुपए, आस्था सामाजिक एवं सांस्कृतिक कल्याण समिति को 11 लाख 11 हज़ार 500 रुपए, संस्कार कल्चरल समिति को 25 लाख 21 हज़ार 628 रुपए का भुगतान किया गया है. इसके अलावा श्रीराम इंटरप्राइजेज को करीब 12 से 15 लाख रुपए, महाकाल कंस्ट्रक्शन एंड सप्लायर को 10 लाख के करीब, उमाश्री कंस्ट्रक्शन एंड सप्लायर, कृष्णा सॉ मिल सहित कई अन्य छोटी बड़ी फार्मो को भी भुगतान किया गया है. जिसकी राशि कई लाखों रुपए में है. इन सब का यदि टोटल किया जाए तो यह राशि 3 करोड रुपए से अधिक की हो जाती है.
किसका मालिक कौन
अब हम यह समझ लेते हैं कि किस कंपनी का कौन मालिक है. शाम्भवी ऑटो पार्ट्स के मालिक भाजपा के एक पूर्व नगर मंडल अध्यक्ष हैं. तो भक्ति इंटरप्राइजेज का मालिक उन्हीं पूर्व मंडल अध्यक्ष के साले हैं. इसी तरह देवांश सेल्स एंड सप्लायर प्रदेश सरकार के एक कद्दावर कैबिनेट मंत्री के खास हैं. इसी तरह आस्था और संस्कार नाम की दो फर्म भी एक मंत्री और विधायक के आशीर्वाद से चल रही हैं. महाकाल कंस्ट्रक्शन और उमा श्री कंस्ट्रक्शन का दमोह में कहां ऑफिस है और यह क्या सप्लाई करती है इसके बारे में तो लोगों को जानकारी ही नहीं है. अब आप समझ सकते हैं कि इस राशि का बंदरबाट इतनी आसानी से क्यों हो गया ? क्योंकि अधिकांश लोग सत्ता पक्ष से जुड़े हैं. तो कोई मंत्री का तो कोई विधायक का खास है. ऐसे में उनका भुगतान रोकने की हिम्मत कौन कर सकता है
कौन फर्म कहां खुली पता नहीं
जिन फर्मो को भुगतान किया गया है उन फर्म को तो लोग जानते ही नहीं हैं. कौन सी फर्म का ऑफिस कहां पर है. उसका जीएसटी नंबर क्या है ? वह क्या काम करती हैं? इसके बारे में भी लोगों को जानकारी नहीं है. लेकिन ताज्जुब की बात ये है की एक ही फर्म 20 प्रकार के काम करती है. मसलन मटेरियल सप्लाई, चूना, फिटकरी, हार्पिक की सप्लाई. झाड़ू ब्रश की सप्लाई करने के साथ वाहनों की रिपेयरिंग, नाली सफाई से लेकर तमाम तरह के काम करती हैं. आखिर उनसे पूछेगा भी कौन कि आपकी फर्म को मल्टी पर्पस काम करने का लाइसेंस कहां से मिला ? शांभवी ऑटो तो दमोह में खुली ही नहीं है फिर भी उसके फर्जी बिल बन गए.
एक के बाद एक फर्जीवाड़ा कैसे किया जाता है जरा इसको भी समझ लेते हैं. भोपाल की दीपक इंडस्ट्रीज ने नगर पालिका को बाल्टी के आकार से कुछ बड़े डस्टबिन, दो पहिया तथा चार पहिया हाथ ठेला सप्लाई भी किए हैं. इसमें डस्टबिन की कीमत महज एक हजार रुपए बाजार मूल्य पर होगी. इसी तरह दो पहिया और चार पहिया हाथ ठेला की कीमत बाजार मूल्य पर अधिकतम तीन से पांच हजार होगी. लेकिन इन डस्टबिन और हाथ ठेला के लिए कई लाखों रुपए का भुगतान किया गया है. जो रेट लगाया गया है वह बाजार मूल्य से कम से कम चार गुना अधिक है. इसी तरह कचरा समेटने वाले टिपर वाहनों की मरम्मत पर लाखों रुपए खर्च किए गए हैं. जबकि जो वाहन नंबर भुगतान में दर्शाए गए हैं वह अब कबाड़ हो चुके हैं. और उन कबाड़ वाहनों के नाम पर भी भुगतान कर दिया गया है. हद तो तब जब एक वाहन में एक ही महीने के अंदर उसमें 15000 रुपए से अधिक मूल्य की दो बार नई बैटरी भी रख दी गई. जबकि एक बैटरी कम से कम 3 साल की सर्विस देती है. नगर पालिका में आउटसोर्स के माध्यम से ठेका पद्धति द्वारा वार्डों में सफाई व्यवस्था का संचालन किया जाता है, लेकिन जो लिस्ट में भुगतान किया गया है उसमें ऐसे काम के लिए कई बार भुगतान है. जिसमें शहर की सफाई व्यवस्था के नाम पर 80 हज़ार से लेकर के 99 हजार रुपए तक का भुगतान किया गया है. ठीक इसी तरह नगर के बारादरी कुआं में चारों तरफ रंग रोगन और कुएं के ऊपर जाली लगाने के नाम पर तीन-तीन बार भुगतान किया गया है जिसमें खिड़की जाली कवर सहित अलग-अलग तरीके से पैसा आहरित किया गया है. नगर पालिका में मचे भ्रष्टाचार की तो यह मात्र बानगी है. यदि पूरी फाइलों को और पूरे मामले को सूक्ष्मता से परीक्षण किया जाए तो कई बिल तो ऐसे भी मिलेंगे जहां पर बगैर निर्माण कार्य के पेपर ब्लॉक के लिए लाखों रुपए का भुगतान कर दिया गया. सीसी रोड के नाम पर भुगतान कर दिया गया. इस पूरे कांड में परिषद के कुछ पार्षद भी शामिल हैं. कहने के लिए नगर पालिका पर कांग्रेस की अध्यक्ष बैठी हैं लेकिन वजनदारी नगर पालिका में भाजपा पार्षदों की है. इसीलिए भाजपा का कोई नेता इस मामले पर बयान देना नहीं चाह रहा है.
इनका कहना है
मैं बहुत जल्द ही मुख्यमंत्री के समक्ष एवं नगरीय प्रशासन मंत्री के समक्ष यह पूरा भ्रष्टाचार का मामला लेकर जाने वाला हूं।नगर पालिका में जब से कांग्रेस की सरकार बनी है भ्रष्टाचार चरम पर है। यदि दोषियों पर प्रशासन द्वारा जल्द जाँच कर एफआईआर दर्ज जेल नहीं भेजा गया तो बहुत ही उम्र आंदोलन होगा। विक्रांत गुप्ता भाजपा पार्षद प्रतिपक्ष
कलेक्टर ने बनाई जांच कमेटी
मामला सामने आने के बाद कलेक्टर सुधीर कुमार गुर्जर का कहना है कि मामला उनके संज्ञान में आया है और उन्होंने इसकी जांच के लिए कमेटी का भी गठन किया है यह कमेटी 15 दिन के अंदर अपनी जांच रिपोर्ट उन्हें सौंपेगी रिपोर्ट आने के बाद ही कार्रवाई की जाएगी.