दमोह. दमोह के बजरिया वार्ड में स्थित गुरुद्वारा में जब भी कोई गुरुग्रंथ साहिब के दर्शन के लिए पहुंचता है, तो पहले उन्हें महात्मा गांधी के स्टेच्यू के दर्शन होता है। गुरुद्वारा में यह गांधी का यह स्टेच्यू इसीलिए लगवाया गया है, क्योंकि गांधी ने ही इस गुरुद्वारे की नींव चांदी की कन्नी से १९३३ में रखी थी। आज महात्मा गांधी जयंती पर सभी महात्मा गांधी को याद करेंगे और उनका दमोह से जुड़ा संस्मरण याद करेंगे। दरअसल, 1933 में दमोह पहुंचे महात्मा गांधी ने न सिर्फ नशा और गलत आचरण के विरुद्ध अलख जगाई, बल्कि समाज सुधार के लिए धर्म स्थल की स्थापना भी की थी। गांधी दमोह के हरिजन वार्ड में गुरुद्वारा की स्थापना करके गए थे, जो अब भी यहां बना हुआ है। महात्मा गांधी मध्यप्रदेश के दमोह में भी 2 दिसंबर 1933 को आए थे। बताते है कि महात्मा गांधी सागर के अनंतपुरा बलेह होते हुए दमोह पहुंचे थे, जिनका व्यापारियों ने मोरगंज गल्ला मंडी में जोरदार स्वागत किया था। वह भी साथ हो लिए और महात्मा गांधी के आह्वान पर वह भी उनके आंदोलनों की राह पर चल पड़े। उस दौरान मोरगंज गल्ला मंडी में व्यापारियों द्वारा एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। जिसमें अपार भीड़ मौजूद थी। इस दौरान यहां एक गुरुद्वारे की नींव भी रखी थी। साथ ही उन्होंने संदेश दिया था कि आप लोग शराब छोड़ दें, उसके बाद वार्ड के लोगों ने भी प्रण लिया और उसके बाद शराब छोड़ दी।
महात्मा गांधी जब दमोह पहुंचे तो वह हरिजन बस्ती में गए थे, जो इस समय बजरिया वार्ड नंबर 3 किदवई वार्ड से जाना जाता है। यहां के लोग अस्वच्छ धंधों और आचरण में लिप्त थे। शराब की लत से आबादी में जकड़ी हुई थी। इस लत से महात्मा गांधी ने मुक्त कराया तो आज भी इस मोहल्ले के अनेक परिवार के युवा शराब, गुटखा आदि का सेवन नहीं करते हैं।
इस बस्ती में सभी लोग गुरु नानक देव के बताए मार्ग कर्म करो, जप करो और दान करो के मूल वाक्य को अपनाए हुए हैं। यहां रहने वाले युवा बताते हैं कि उनके परिजन बताते है कि जब महात्मा गांधी आए और उन्होंने लोगों को नशा मुक्त करते हुए एक धर्म की राह पर चलने को कहा। उस दौरान हरिजन वार्ड के लोग गुरुनानक देव के सिद्दांतों को मानते थे, जिसके कारण महात्मा गांधी ने स्वयं अपने हाथों से गुरुद्वारा की नींव रखी। जहां पूरे प्रदेश में सबसे बड़े गुरुग्रंथ साहिब स्थापित है।
गुरुद्वारे के ग्रंथी मानते हैं कि जब यहां की समाज ने धर्म के मार्ग पर कदम बढ़ाए तो गुरुद्वारा व सबसे बड़ी गुरुवाणी की मौजूदगी ने सभी को नशा व अस्वच्छता के कामों से पृथक कर दिया और आज के दौर में सभी कर्म की राह पर अपना मुकाम हासिल कर रहे हैं। इस गुरुद्वारा से जुड़े लोग बताते हैं कि उनके बुजुर्गों की विरासत को बाल्मीकि समाज के लोग संभाले हुए हैं और गुरुवाणी पढऩा इस वार्ड के बच्चे भी जानते हैं। यहां के लोगों को अभी भी लगता है कि महात्मा गांधी की आत्मा यदि कहीं बसती है तो वह दमोह के इसी गुरुद्वारे में ही बसी हुई है। यही कारण है कि गुरुद्वारा के प्रवेश में ही गांधी जी का स्टेच्यू भी बनाया गया है।